उत्तर प्रदेश/फतेहपुर :- (रिपोर्टर – शिवकुमार सिंह) नरसिंहपुर कबरहा। श्रद्धा और भक्ति का ऐसा अनोखा संगम शायद ही कहीं देखने को मिलता हो, जैसा कि नरसिंहपुर कबरहा गांव में माता नवदुर्गा की 9 दिवसीय आराधना के दौरान देखने को मिला। पूरे नौ दिन गांव का माहौल भक्ति रस में डूबा रहा। छोटे-बड़े, महिलाएं, युवा और बुजुर्ग – सभी ने माँ की सेवा, भजन और आरती में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 
नौ दिन की भक्ति, आस्था और उल्लास
गांव के शंकर भगवान मंदिर परिसर में पिछले 23 वर्षों से माता नवदुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। परंपरा के अनुसार, नवरात्र के नौ दिनों तक गांव के लोग उपवास, भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ में डूबे रहते हैं। प्रत्येक घर से आस्था का दीप जलता है और गांव एक बड़े परिवार की तरह माता की आराधना करता है। 
माता रानी की झांकी और विसर्जन यात्रा
विसर्जन दिवस पर सुबह विशेष पूजा-अर्चना के बाद माता दुर्गा की प्रतिमा को ट्रैक्टर पर सजाई गई झांकी के साथ पूरे गांव में भ्रमण कराया गया। भक्ति गीतों और जयकारों से वातावरण गूंज उठा। इसके बाद श्रद्धालुओं की उपस्थिति में प्रतिमा को हिनौता मोड़ के पास नहर में विधि-विधान से विसर्जित किया गया।
आस्था का विस्तार – दूसरे मोहल्ले में भी विराजमान हुई माता रानी
गौर करने वाली बात यह है कि अब गांव के दूसरे मोहल्ले में भी बीते कुछ वर्षों से माता रानी की प्रतिमा विराजित की जाने लगी है। इस प्रकार एक ही गांव में दो स्थानों पर स्थापित प्रतिमाओं का भव्य विसर्जन आयोजित होने से पूरा वातावरण और भी अधिक भक्ति, उल्लास और दिव्यता से सराबोर हो जाता है। यह न सिर्फ आस्था की गहराई को दर्शाता है, बल्कि इस परंपरा की बढ़ती लोकप्रियता और पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ रही धार्मिक चेतना का भी प्रतीक है।
परंपरा में छिपा संदेश- गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि माता रानी की यह परंपरा सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे गांव को एकता, भाईचारे और सामूहिक आस्था के सूत्र में बांधती है। नौ दिनों तक गांववासी हर संकट और दुख से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। नरसिंहपुर कबरहा का यह आयोजन अब सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक महापर्व बन चुका है। यहां की भक्ति और आयोजन की भव्यता देख गांव ही नहीं, आसपास के लोग भी श्रद्धा से खिंचे चले आते हैं। यह आस्था और भक्ति का अनूठा संगम हमें यह संदेश देता है कि माता रानी की आराधना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है।




